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लोकगायिका शारदा सिन्हा का नाम छठ महापर्व के गीतों और भोजपुरी-मिथिला की संस्कृति में एक अनमोल आवाज के रूप में गूंजता है। अपने जीवन के 72वें वर्ष में, 5 नवंबर 2024 की रात को उन्होंने एम्स दिल्ली में अंतिम सांस ली। उन्हें ‘मिथिला की बेगम अख्तर’ के नाम से भी जाना जाता था, जो केवल बिहार ही नहीं, बल्कि देशभर के लाखों लोगों के लिए श्रद्धा और भावुकता से भरी आवाज थीं। उनके गीतों में एक मिट्टी की महक और अपनेपन की झलक मिलती थी, जिसे सुनते ही गांव, घर, और परिवार की यादें ताजा हो जाती थीं।
पद्मभूषण सम्मानित शारदा सिन्हा: विरासत और उपलब्धियां
शारदा सिन्हा को उनके लोकगायन के लिए पद्मश्री (1991) और पद्मभूषण (2018) जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया। 1971 में अपने पहले मैथिली गीत “दुलरुआ भइया” के साथ उन्होंने जो सफर शुरू किया, वह आगे चलकर भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में अनेकों गीतों और प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा। वह बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को एक नई पहचान देने वाली कलाकार थीं, जिन्होंने “छठी मईया आई ना दुआरिया”, “कार्तिक मास इजोरिया”, और “द्वार चेकेई” जैसे गीतों से लोकसंगीत में अमिट छाप छोड़ी।
छठ पर्व और उनकी आवाज का गहरा संबंध
छठ पूजा के हर महत्त्वपूर्ण अवसर पर शारदा सिन्हा के गीत मानो त्योहार का अभिन्न हिस्सा बन जाते थे। उनके गीतों के बिना छठ का आयोजन अधूरा लगता था। हर साल छठ पर उनका नया गीत रिलीज होता था, और 2024 में भी उन्होंने अपनी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति के बावजूद एक गीत जारी किया। उन्होंने हमेशा छठ पूजा को अपनी आवाज दी, जो हर साल लाखों लोगों के दिलों को छूती थी और इस महापर्व का जश्न बढ़ाती थी। उनकी आवाज के बिना छठ की कल्पना अब मुश्किल है।
बॉलीवुड और शारदा सिन्हा का सफर
शारदा सिन्हा ने अपने लोकगायन के साथ-साथ बॉलीवुड में भी कदम रखा। उनके लोकप्रिय गानों में “गैंग्स ऑफ वासेपुर- II” का “तार बिजली” और “हम आपके हैं कौन” का “बाबुल” प्रमुख हैं। उनका बॉलीवुड सफर अद्भुत रहा, क्योंकि उन्होंने अपनी विशिष्ट आवाज से फिल्मों में भी लोकगायन की सादगी और गरिमा को बनाए रखा। मशहूर संगीतकार स्नेहा खानवलकर ने उनकी आवाज को “शुद्ध शराब” के रूप में परिभाषित किया था।
जीवन और संगीत में समर्पण
1 नवंबर 1952 को बिहार के सुपौल में जन्मीं शारदा सिन्हा ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा पंडित रघु झा और पंडित सीताराम हरि डांडेकर से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने ठुमरी और दादरा में ख्याति प्राप्त पन्ना देवी से संगीत की बारीकियाँ सीखी। वह एक शीर्ष ग्रेड की ऑल इंडिया रेडियो आर्टिस्ट भी थीं और संगीत को जीवन भर समर्पित रहीं। उनके पुत्र अंशुमान द्वारा शारदा सिन्हा आर्ट एंड कल्चर फाउंडेशन चलाया जाता है, जो बिहार और उत्तर भारत की संस्कृति को संजोने और बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है।
FAQs: शारदा सिन्हा के जीवन और योगदान के बारे में
- शारदा सिन्हा को किन प्रमुख पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?
- शारदा सिन्हा को पद्मश्री (1991), पद्मभूषण (2018), और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2000) से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें कई अन्य राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले।
- शारदा सिन्हा के सबसे प्रसिद्ध छठ गीत कौन-कौन से हैं?
- उनके प्रसिद्ध छठ गीतों में “छठी मईया आई ना दुआरिया”, “कार्तिक मास इजोरिया”, “हो दिनानाथ”, “द्वार चेकेई” और “कोयल बिन” शामिल हैं।
- शारदा सिन्हा का छठ पर्व के साथ क्या संबंध था?
- शारदा सिन्हा छठ पर्व की सबसे प्रमुख आवाज थीं। उनके गीत छठ पर्व के आयोजनों का हिस्सा होते थे, और वह इस महापर्व के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी थीं।
- शारदा सिन्हा ने बॉलीवुड में कौन-कौन से गीत गाए?
- उनके बॉलीवुड गीतों में “तार बिजली” (गैंग्स ऑफ वासेपुर-II), “बाबुल” (हम आपके हैं कौन) और “कहे तो से सजना” (मैंने प्यार किया) शामिल हैं।
शारदा सिन्हा के निधन से लोक संगीत जगत में एक ऐसी जगह खाली हो गई है, जिसे भरना असंभव है। उनकी आवाज, उनके गीत और उनकी लोकधरोहर सदियों तक गूंजती रहेंगी।